काश लौट आए वो दिन – Kash Laut Aaye wo Din

काश लौट आए वो दिन

“काग़ज़ की कश्ती थी पानी का किनारा था,
खेलने की मस्ती थी ये दिल अवारा था।
कहाँ आ गए इस समझदारी के दलदल में,
वो नादान बचपन भी कितना प्यारा था।”

यह शायरी जिसने भी लिखी एकदम सही और दिल को छू ले गई।दोस्तों आज का यह ब्लॉग बचपन पर है।यह ब्लॉग मैंने अपने भाई (सोनू) के कहने पर लिखा है।बचपन का शब्द सोचने मात्र से हम लोग के चेहरे पर मुस्कान जरूर आई होगी।

आज का यह ब्लॉग इसलिए भी जरूरी है कि हम लोग आजकल के बच्चे का उसका बचपन नहीं दिला पा रहे हैं।हम यह भी मानते हैं कि अब के बच्चे पहले के बच्चे से ज्यादा स्मार्ट और तेज है लेकिन पहले के बच्चे का बचपन और अब के बच्चे का बचपन की तुलना करें तो जमीन आसमान का अंतर आ जाता है।

किसी ने क्या खूब कहा है:-


“बचपन के दिन भी कितने अच्छे होते थे
तब दिल नहीं सिर्फ खिलौने टूटा करते थे
अब तो एक आंसू भी बर्दाश्त नहीं होता
और बचपन में जी भरकर रोया करते थे”

काश लौट आए वो दिन

आजकल के बच्चे का बचपन स्मार्टफोन या डिजिटल गेम तक ही सीमित रह गया है और एक हमारा बचपन था शक्तिमान देखना ,लड़ाई, झगड़ा करना खेलकूद ,बड़ों की डांट सुनना, मार खाना इसके आगे कुछ आता ही नहीं था।

आजकल के बच्चे पुराने खेलकूद को भूलते जा रहे हैं। इसका आधे से अधिक दोष में उसके माता-पिता को मानता हूं। क्योंकि उनके पास उनके लिए समय नहीं है और जिन माता-पिता के पास समय होता है तो अपने आराम के लिए बच्चों को फोन मोबाइल या डिजिटल चीजें दे देते हैं खेलने के लिए।

अब बात करते हैं अपने बचपन की कुछ यादों को जो अब तक मुझे याद है। पहले के खेलकूद भी अजीब होते थे बुढ़िया कबड्डी, इडापानी, छुआछूत, लुकाछिपी कित कित, क्रिकेट इत्यादि।
बारिश में नावं बनाकर बहाना और फिर यह देखना है कि सबसे आगे किसका नांव है।भाइयों के साथ कैरम खेलना बहनों के साथ लूडो खेलना।

अगर मुझसे पूछा जाए कि आप अपने बचपन का कोई एक खास चीज बताएं तो मैं यह बोलूंगा।जब हम सब ज्यादा खेलने में बिजी हो जाते थे तो चाचा ,पापा या दादाजी सिर्फ एक ही डायलॉग मारते थे ,इतना ध्यान अगर। पढ़ने में लगाता तो अभी तक कहां से कहां पहुंच जाता और हम लोग आपस में यह बोल कर हंसते थे कि कभी यह नहीं कहेंगी जाओ बेटा जाकर थोड़ा सा खेल आओ।

हम लोगों का पढ़ने का तरीका भी अलग था। हम सब जब भाई -बहन खेलकूद करके शाम को पढ़ने के लिए बैठते थे तो आंगन में चारों कोनों पर जाकर अलग-अलग बैठकर चिल्ला चिल्लाकर पढ़ते थे ताकि मम्मी – पापा, दादा- दादी, चाचा – चाची को लगे कि बेटा पढ़ रहा है। उन्हें क्या पता हम लोग तो इंतजार करते थे पहले उठकर कौन खाने जाता है ताकि पढ़ाई खत्म हो जाए और जाकर टीवी देख सके।

अगर हम अपने बचपन की बात करें तो शायद यह ब्लॉग भी कम पड़ जाएगा।यह तो बस थोड़ा सा झलक है।आज के समय में हम सब अपना बचपन भूल रहे हैं।
मेरा मानना है कि अपने बचपन को हमेशा जिंदा रखना चाहिए और जब भी मौका मिले उसे जी भी लेना चाहिए। किसी ने क्या खूब लिखा है:-

“ना कुछ पाने की आशा ना कुछ खोने का डर,
बस अपनी ही धुन, बस अपने सपनो का घर,
काश मिल जाए फिर मुझे वो बचपन का पहर।”

उम्मीद है आपको यह ब्लॉग पसंद आया होगा और आपका बचपन जरूर याद आया होगा।जैसे कि आप सबको पता है कोरोना वायरस के कारण सरकार ने पूरे देश में लॉकडाउन कर दिया है। आप सब बोर हो रहे होंगे लेकिन इस लॉकडाउन में अगर हम सब अपना बचपन याद करके गुजार देंगे तो फिर वो तो जीने का नया तरीका मिलेगा।


Stay home stay safe and be strong

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

Written By :- RAKESH KUMAR

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